बरसात
बरसात
इन बूंद भरी बरसातों में,
दुनिया लगती कितनी सुंदर है।
पर कोई क्या जाने, किसको ये पता,
ये बरसात नहीं मेरे आँसुओं का समंदर है।
पर कुछ गम नहीं होने दो बरसातों को,
उनको मिले सुकुं हम तो जागेंगे रातों को।
हमको तो ये पता है, ये उनकी खता नहीं है,
नादांँ हैं वो, भला क्या जानें मेरे दिल के जज्बातों को।
इस बरसात से चारों तरफ
जब बस दल-दल सा बन जाएगा,
उस दल-दल में मेरा गम,
यारों सामाहित हो जाएगा।
छिन्न-भिन्न होकर वो जब
एकदम से खाद बन जाएगा।
फिर वही खाद अपने दम पर
एक हरित बाग उगाएगा।
उस हरित बाग की खुशबु से
सारा मंडल जब महकेगा,
उस खुशबु पर मेरी तरह
तुम्हारा भी कुछ हक होगा।
उस हरित बाग की डाली पर
जब दो पंछी चहकेंगे,
उनके प्रेम की जीत में
अपना अमर प्रणव हम देखेंगे।
