बरसात की पहली रात
बरसात की पहली रात


भीगे तन मन कह रहे, आज दिलों की बात।
सदियों से हम बंधे रहे, लो एक दूजे के साथ।।
ख्वाहिशें पूरी करी रब ने, जब भी माँगा साथ।
झूम झूम चलते रहे जीवन में, ले हाथों में हाथ।।
बरसी जब काली घटा, चमकी दामिनी उस रात।
सहम कर हमने लिए, हाथों में मुलायम गात।।
झोंपड़ी वह खामोश थी, टप टप टपकी जात।
इशारों में बीत गई थी, बरसात की पहली रात।।
लो फिर बारिश बैरण आ गई, अगन लगाने साथ।
विरह वेदना बढ़ रही, वो आये न अबकी बरसात।।