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बरगद

बरगद

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बरगद फैलाए खड़ा शाखाएँ हरी भरी

एक मजबूत नींव को सहारा दे दो 

सालों से फल फूल हरी छाँव देते आया है 

कुछ आयुध खड़े हुए है 

ना धार ना तलवार बस

चीर रहे है खाल..!


दूर दूर से जंगल बड़े हाथ उठाए है खड़े 

नींव की जड़ें प्रसर रही दूर दराज़ देशों में

बरगद बड़ा महान है निज वजूद बचाने 

आस लगाए पड़ा है

सर उठाकर मांगे साथ..!


एक झील है प्यारी बड़ी

कमल से लथपथ पड़ी

आओ उठाओ सब एक एक 

धरो ईश चरण बिनती करें 

पूरी कायनात में सुगंधित कमल खिले 

बरगद की आयु बढ़े

देश पावन सा उपर उठे..!


जुड़ेगी जब ऊँगलियाँ पाँच 

पंजा भी सिकुड़ उठेगा

कमल प्रबुद्ध के सिर धरो 

माँ वतन की आन बढ़ेगी

सर तिरंगा का इज्जत से उठे 

माँ भारत की जय जयकार जगे।


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