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Nandita Tanuja

Abstract

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Nandita Tanuja

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बरगद की छांव

बरगद की छांव

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मन को भाये

बरगद की छांव रे

कड़ी धूप चमके

सुकून से मिला दे

बरगद की ये छांव रे

धीमी बहे मंद पुरवईया

दिला दे याद अपना गाँव रे


बरगद की छांव रे

स्वयं में मुस्कुराये

स्वयं को हिलाये

बोले - आजा आजा प्यारे

राही तू है थका हुआ हारे रे

बैठ जा कुछ देर पास हमारे

देख खड़ा बुला रहा हूँ

मैं बरगद की छांव रे !


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