बंटवारा
बंटवारा
जब भर जाती है मध्य भावना
जीवन के उल्लास में
कटु वचनों की दग्ध भावना
प्रेम के खल्लास में
रील ही अब घूम रही,
वैर ही अब साधना
आग लगी फिर समुद्र में
फैसला फिर नदियों में ..........
फैसला फिर नदियों में........
काल के फिर वशीभूत हैं
जीवन की ये यातना
मिलना चाहा
फिर मिलना ना भी
अरिता है फिर ज्वाला अग्नि
अहंकार की भावना
क्रोध जगा है अब
जाना ना भी
घूम लिए फिर सागर में
अब तो घटाव होगा ही
जीवन के अब हर पहलू में
सांझा घटाव यायावर में।