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Premdas Vasu Surekha 'सद्कवि'

Abstract

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Premdas Vasu Surekha 'सद्कवि'

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दौर मानवता

दौर मानवता

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दौर ए आलम खुदा का 

       हम इतने महसूर हुए


वक्त की दरिया में 

     हम खुद ही मजबूर हुए


ओ वतन के रहनुमाओं

     कभी तो नजरों को चहुंओर घुमाओ


 क्यों मानवता राख करके 

     तुम खुद कुछ मानव तो बनाओ।



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