दौर मानवता
दौर मानवता
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दौर ए आलम खुदा का
हम इतने महसूर हुए
वक्त की दरिया में
हम खुद ही मजबूर हुए
ओ वतन के रहनुमाओं
कभी तो नजरों को चहुंओर घुमाओ
क्यों मानवता राख करके
तुम खुद कुछ मानव तो बनाओ।