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Arti Agarwal

Tragedy Others

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Arti Agarwal

Tragedy Others

बंजारा मन

बंजारा मन

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बंजारा मन अब कैद हो गया

घर के ही गलियारे में। 

छोड़ बाजार और हाट घाट सब

बैठा है चौबारे में।। 


बर्गर- पिज्जा से था दिन निकलता

खाती थी रबड़ी घाट की, 

होटल का खाना था भाता

दीवानी थी छोले चाट की, 

आज वही चंचल मन संतोष कर रहा

रोटी दाल गुजारे में। 

बंजारा मन अब कैद हो गया

घर के ही गलियारे में।। 


सजती संवरती बनती निखरती

वो तो बड़े शौक से, 

मस्त मोरनी सी लहराती चलती

गली, चौराहे, चौक से, 

आज वही सुंदर चेहरा छिप गया

पिछे मास्क बेचारे में। 

बंजारा मन अब कैद हो गया

घर के ही गलियारे में।।


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