खुशी
खुशी
एक दिन मैं निकल पड़ी थी
खुशी की तलाश में।
कभी दूर-दूर पुकारती और
कभी ढूंढती आसपास में।
सोच रही थी मुझे भी
थोड़ी सी खुशी मिल जाये,
सोच रही थी मेरा भी
मुरझाया हुआ चेहरा खिल जाये,
मैंने सुना है खुशियाँ तो बहुत
फैली है दुनिया जहान में,
खरीद लूँ मुझे मिले अगर
किसी दुकान में,
तभी कहीं से ठंडी हवा का
झोंका मुझे सहला गया,
कमर तक लटके मेरे बालों को
हवा में ऊँचा उड़ा गया,
थोड़ी दूर पर पक्षियों के
झुरमुट जैसे गा रहे थे,
पास ही कुछ बच्चे खेलने
को मुझे बुला रहे थे,
वहीं एक बगीचे में
हज़ारों फूल खिले हुए थे,
मेरे होंठ बरबस ही मुस्कुरा उठे
जो बरसों से सिले हुए थे,
सोच में पड़ गई मैं जिन खुशियों
के लिये उम्र भर परेशान थी,
वो तो मेरे आसपास थी और
मैं उनसे अनजान थी,
मत ढूंढो इसको इधर-उधर
मत ढूंढो इसको यहाँ- वहाँ।
खुशियाँ तो आपके चारों ओर है
नज़र घुमाकर देखो जरा।
