बिन टिकट की ट्रेन
बिन टिकट की ट्रेन
सब अपने अपने मन के मीत,
सब के अपने अपने जंजाल।
कोई नित आनन्द मंगल गाते,
किसी का जीवन मुसीबत पहाड़।।
युवा शक्ति नित नशे में धँसती,
सब ओर मची है हाहाकार।
डिग्री लेकर सब आवारा घूमें,
न कोई काम न रोजगार।।
बिन गुण सब के सब कुर्सी ढूंढे,
ढूंढे रोटी कपड़ा और मकान।
उल्टी सीधी सब चालें चलते,
बेकार घूमना बन रही शान।।
सब खुद से नाराज हैं दिखते,
ढूंढे साधन लम्बी टाँगे पसार।
सब ओर खूब भीड़ भड़ाका,
तन्हाई का हर कोई शिकार।।
सब के मन में पलती दिखती,
बस अभिलाषा दिल्ली दर्शन की।
बिन टिकट की सबने ट्रैन है पकड़ी,
चौंधयाई है आँखें कुर्सी आकर्षण की।।