बिन -पिया संग होली
बिन -पिया संग होली
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सूनी लगे बिन- पिया संग होली, कैसे खेलूँ अकेली।
हृदय उल्लास से फीका पड़ता, सूनी जीवन की रंगोली।।
मेरे पिया परदेश बसत हैं, कैसे बनाऊँ टोली।
गालों का रंग भी धूमिल पड़ता, कौन करे ठिठोली।।
रंग, अबीर, की चाहत न मुझको, यादों के सहारे जी ली।
प्रेम रंग उनका ऐसा चढ़ता ,सूरत है कितनी भोली।।
उन बिन सूना- सूना सब लगता, किस से खेलूँ होली।
यादें उनकी रह -रह सताती, मिले ना कोई हमजोली।।
मन फिर भी धीर है बँधाता, प्रेम -भक्ति सबसे रसीली।
पिया मेरे तो मन में हैं बसते, मन में ही खेलूँ होली।।