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Bhavna Thaker

Abstract

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Bhavna Thaker

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बिखरी तकदीर

बिखरी तकदीर

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लकीरों से निकल कर

तकदीर के कुछ रोशन टुकड़े

रवाँ-रवाँ से बिखर गए !


ख़फ़ा है शायद

नेमतों का गुब्बार

क्यूँ है आजकल

दर्द ही दर्द बेशुमार ! 


लाईलाज सी ज़िंदगी में

हजारों रंग थे निखरे हुए,

एक ज़लज़ले ने

आबशार बिखेर दिए ! 


खिज़ा के बुलबुले

उड़ कर जला रहे हैं,

गर्द ही गर्द का सैलाब है

दिल में सुहाने मंज़र

सिहर गए !


आते हुए लम्हों में

ढूँढ रही हूँ

कुछ रोशन कतरे,

या खुदा बीते हुए लम्हों का

कारवाँ न कहीं वापस मिले !

 

क्यूँ धनी नहीं किस्मत की

हर खुशियाँ ख़फ़ा रहे,

हर इबादत अर्श की चौखट से

टकराकर वापस मूड़े।


है कहीं कोई आसमान

ऐसा जिसमें दिखे

मुझे कोई चाँद चमकता।


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