बिखरे जज़्बात
बिखरे जज़्बात
हम जब किसी का ख्याल थे
वे लम्हें बड़े ही कमाल थे
खोजते थे खुद को अक्सर
हाल अपने बड़े बेहाल थे
पांव जमीन न छूते थे
उनकी बाहें थीं, हम निढाल थे
गर था उनका पुरकशिश बदन
हम भी हुस्न ओ जमाल थे
उनकी आंखों में था अक्स अपना
हुए हम भी कबके हलाल थे
थी हर अदा उनकी मोहब्ब्त भरी
तरीके इज़हार भी कमाल थे
इख़्तिलाख की गुंजाइश न थी
रिश्ते अपने बाकमाल थे
थे हमकदम हम, हमराह भी
मोहब्बत में हम बहाल थे
फिर न जाने क्या हवा चली
ले गई सब, छोड़े बस मलाल थे
क्या जज़्बात फिर काम आते
गुम जब सारे जलाल थे.......

