बिकाऊ ईमानदारी !
बिकाऊ ईमानदारी !
कलयुग के बाजार में
दो औरतें बिकने के
लिए खड़ी थी तैयार !
एक थी दुबली-पतली,
बीमार सी,
फटे कपड़ो से
अंगों को छिपाती हुई
ईमानदारी !
डरी सी सहमी सी,
बिकने को थी वह तैयार !
दूसरी थी तरोताज़ा,
सुन्दर सी
भरावदार अंगों वाली,
तंग कपड़ों में
अंगों को दिखाती हुई
बेईमानी !
तेज़तर्रार सी
बिकने को थी वह भी
तैयार !!
लोग आते थे
ईमानदारी को देख
मुँह मोड़कर चले जाते थे !
जिसे मरना हो,
बर्बाद होना हो
वही खरीदेगा ईमानदारी को
बोलकर चले जाते थे !
और बेईमानी को देखकर,
लोग तारीफ करते
न थकते थे !
बेईमानी की जब
बोली लगी,
अच्छे दामो में वह बिक गई !
ईमानदारी आज भी
बिना बिके, वहीं खड़ी है,
बिकने को तैयार !!
