STORYMIRROR

Neelam Chawla

Abstract

2  

Neelam Chawla

Abstract

बीती रात कमल दल फूले

बीती रात कमल दल फूले

1 min
162

चौखट के उस पार 

रखें आईने में 

शक्ल देख

रंग मटिया‌ सा है तुम्हारा

 

मैं - "मां ,क्या मैं कोयला हूं?"

मां -" न ,तुम हीरा हो।

पड़ोस की चाची मुझे रात कहती हैं"

मां -" सही ही तो है रात ही तो अपने रूह के 

कतरा कतरा में किरण की भरकर

सुबह बन इतराती है और

सुबह ,रात की परछाईं है


अफसोस ,चाची अभी तक सुबह देख 

ही नहीं पाई। 




Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract