बीती रात कमल दल फूले
बीती रात कमल दल फूले
चौखट के उस पार
रखें आईने में
शक्ल देख
रंग मटिया सा है तुम्हारा
मैं - "मां ,क्या मैं कोयला हूं?"
मां -" न ,तुम हीरा हो।
पड़ोस की चाची मुझे रात कहती हैं"
मां -" सही ही तो है रात ही तो अपने रूह के
कतरा कतरा में किरण की भरकर
सुबह बन इतराती है और
सुबह ,रात की परछाईं है
अफसोस ,चाची अभी तक सुबह देख
ही नहीं पाई।
