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हरि शंकर गोयल

Tragedy

4  

हरि शंकर गोयल

Tragedy

भयानक रात

भयानक रात

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चांद के आगोश में रात जब सोती है 

तब बड़ी सुहानी, मधुर, सरस होती है 

लेकिन जब चांद से दूर अकेली होती है

तब बहुत भयानक, अंतहीन सी होती है

कभी कभी तो यह रात प्रलय बनकर आती है

एक साथ हजारों जिंदगियों को लील जाती है

ऐसी ही एक भयानक रात 1984 में आई थी 

दंगों के रूप में उसने बहुत तबाही मचाई थी 

एक समुदाय के लोगों को चुन चुन कर मारा गया 

गले में टायर बांध कर उन्हें जिंदा जलाया गया 

क्रूरता का यह वहशी खेल कई रात खेला गया 

वर्षों का विश्वास, भाईचारा एक झटके में पेला गया 

मुझे याद है वो 2 दिसंबर 1984 की भयानक रात 

जब भोपाल में गैस त्रासदी ने किया भयावह आघात 

यूनियन कार्बाइड के संयंत्र में जहरीली गैस लीक हुई

3787 लोगों की जिंदगी अचानक मौत में तब्दील हुई 

चारों तरफ चीख पुकार अफरा तफरी का आलम था 

उस पर सितम ये कि वह भयंकर सर्दी का मौसम था 

लगभग 6 लाख लोग उस त्रासदी की चपेट में आये थे 

उसके दुष्परिणाम तो कई पीढियों तक सामने आये थे 

26 दिसंबर 2004 का दिन कौन भूल सकता है 

सुनामी को याद कर आज भी कलेजा कांपता है 

9.3 की तीव्रता वाला भूकम्प समुद्र में आया था 

अपने साथ सुनामी के रूप में जलजला लाया था 

25-30 मीटर ऊंची लहरों ने सब कुछ निगल लिया

कई टापू समुद्र में समा गये कई गांवों को लील लिया

कहते हैं करीब सवा दो लाख लोग काल के ग्रास बने 

जलवायु परिवर्तन से प्रकृति के प्रकोप का शिकार बने 

और भी कई रातें बड़ी भयानक वाली सिद्ध हुई हैं 

भारत विभाजन की त्रासदी की यादें अभी मिटी नहीं हैं

"सीधी कार्यवाही" के नाम पर हजारों को काट डाला 

पाकिस्तान बनवाने के लिए यह घृणित कांड कर डाला 

कश्मीरी पंडित कैसे भूल सकते हैं उन भयावह रातों को 

सामूहिक नरसंहार कर नोंचा गया था उनके जजबातों को 

ना जाने कितनी माता बहनों के साथ दरिंदगी होयी थी 

इंसानियत भी किसी कोने में पड़ी पड़ी खूब रोयी थी 

जब जब भी ऐसी भयंकर रातों को याद करता हूँ 

सोते सोते भी डर से नींद में ही सिहर उठता हूँ 

काश , ऐसी भयानक रातें फिर कभी नहीं आये 

जिसके कारण जिंदगी की रूह भी कांप जाये।


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