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Yogesh Kanava

Abstract Inspirational

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Yogesh Kanava

Abstract Inspirational

भवसागर तर ही जाऊंगी

भवसागर तर ही जाऊंगी

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अश्रु कण दृग से जो बह गया था ,

तेरी सम्पूर्ण व्यथा वो कह गया था 

खोया विश्वास है और हैं सुनी आँखें 

कटे नहीं कटती अब ये यौवन रातें

आकुलता व्याकुलता और अश्रुधार लिए 

सांवरी सलोनी बैठी मैं मधुरस धार लिए 

फूल खिले देह में पर मन मयूर न नाच रहा 

पपीहा कूक कूक देखो प्रेम राग बाँच रहा

सावन की और मदमस्त शीतल ये बयार 

अगन जगाये मीठी सी पड़ती ये फुहार

कौन जतन करूँ, हिये कैसे अगन धरूँ 

बिरहा की रातों में मैं जीऊं कि मरूँ 

अकेली मैं प्रीतम नहीं अब मेर पास रे 

मिलन की नहीं अब तो कोई आस रे

वो निर्मोही छोड़ गया बीच मझधार 

कौन थामे हाथ रे , कौन ले जाये पार 

प्रश्न यही अब है मेरे नयन अश्रुधार में 

जीवन का अर्थ क्या है अब संसार में 

किन्तु आलिंगन मृत्यु का कोई समाधान नहीं 

प्रेम पाश में बंधा जीवन ही कोई प्रधान नहीं 

हूँ मानवी मैं तो  भवसागर तर ही जाऊंगी

कोई न कोई मार्ग प्रशस्त कर ही जाऊंगी



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