भूत का दर्द
भूत का दर्द
भूत की कहानी भी कुछ बेरंग सी
जिंदगी है नहीं पर राज उसके कई है
सन्नाटे की गोद में वो रहता है
अकेलेपन का चादर ओढ़े सोता है
बोलता है वो बहुत पर सुनने वाला कोई नहीं है
यूं तो होते हैं सपने सभी के
कुछ ज़ज्बात थे उसके भी अपने
देखा था उस खंडहर में उसे
डर कर था पूछा मैंने उससे
परेशान हो क्यों तुम भला
सिसक कर वो बोला
है नहीं कोई साथ मेरे
जब पास जाता हूं किसी के
तो भाग जाता है वो डर के
अपनी दास्ताँ बयां कर
चला गया वो दूर कहीं
क्या वो भूत था?
या थे एहसास हमारे कोई....