अपने अंतर्मन की वेदना से छुप छुप कर सिसक रहे हैं हम। अपने अंतर्मन की वेदना से छुप छुप कर सिसक रहे हैं हम।
दिन नजरें टिकाए रहता राह में, सिसक रही रात। दिन नजरें टिकाए रहता राह में, सिसक रही रात।
देख दहेज के दानव को प्रभु, सिसक रही कहीं सृष्टि सृजिका। देख दहेज के दानव को प्रभु, सिसक रही कहीं सृष्टि सृजिका।
सिसक कर वो बोला है नहीं कोई साथ मेरे सिसक कर वो बोला है नहीं कोई साथ मेरे
बेबाक लिखने की कलम, साथ छोड़ रही है। बेबाक लिखने की कलम, साथ छोड़ रही है।
किसी का दस्तख़त है कागजों पर किसी का नाम पाया जा रहा है।। किसी का दस्तख़त है कागजों पर किसी का नाम पाया जा रहा है।।