चाँदनी भी ख़फ़ा है
चाँदनी भी ख़फ़ा है
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छिप गया बादलों में चाँद, चाँदनी भी ख़फ़ा है।
तीरगी-ए-बख़्त अब भी, कम होती नहीं जफ़ा है।
दूरियाँ बना ली तुमने, किससे कहूँ दिल की बात।
दिन नजरें टिकाए रहता राह में, सिसक रही रात।
फुर्सत है किसके पास, दर्द सबके अपने अपने।
ताकता चकोर चाँद को, बुनता रहता नव सपने।
छँटेगा बादल कभी तो, मुस्कुराएगी फिर चाँदनी।
दूर होगी अंधेरी रात, आएगी ज़िन्दगी में रौशनी।