भूली बिसरी याद पुरानी।
भूली बिसरी याद पुरानी।


याद मुझे अब भी आती है भूली बिसरी वो बात पुरानी।
बचपन की गांव की रातें और वर्षा का टिप टिप पानी।
उमड़ घुमड़ कर काले बादल पागल से बरसे जाते थे।
हम अपने खपरेलों की दालानों में बैठे ये देखे जाते थे।
दादाजी आल्हा ऊदल की सुंदर गाथाएं गाते जाते थे।
महुआ, भुने चने खाते हम सब आल्हा सुनते जाते थे।
मौका पाकर हम सब की टोली बारिश में निकल पड़ी।
सावन के झूले झूल रहे थे हम और बारिश की लगी झड़ी।
पवन झकोरा और रिमझिम से मन की खुशियां फूट पड़ी।
दादी मां गुस्से में निकली सब बच्चों को उनकी डांट पड़ी।
जब बारिश थम जाती हम भौंरे चकरी से खेला करते थे।
कीचड़ भरे कच्चे रास्ते पर हम ऊंची गेंडी ले कर चलते थे।