ग़ज़ल
ग़ज़ल


उम्र का वह दौर अक्सर याद आए हैं हमें।
बंद दिल में कर रखा है गुदगुदाए है हमें।
दोस्तों के साथ गुजरे थे जो दिन उस उम्र में।
वो मस्तियां नादानियां अब भी याद आए हमें।
वो शरारत , रूठना खुद ही मनाना यार को।
याद जब आ जाएं तो अब भी हंसाए हैं हमें।
लोग कहते हैं यह दशकों पुरानी हैं कहानियां।
पर लगे है बात कल की बात याद आए हमें।
अंताक्षरी के गीत गाए जो फटे बांसों के स्वर में।
लता मन्नाडे के स्वरों से बेहतर नजर आए हमें।
हाथ थामें विसाले यार का नदिया तट एकांत में।
वो मुस्कुरा कर बात कर अब भी जगाए हैं हमें।
माना सुनहरा दौर गुजरा पर वो यादें हैं अमर।
जब भी वो सपनों में आएं दिल से लगाए हैं हमें।