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Deepa Joshi

Drama Inspirational

2.1  

Deepa Joshi

Drama Inspirational

बहुत हुआ

बहुत हुआ

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हर दिशा में अपनी

पहचान के लिये

निकली है घर को छोड़कर एक अनाम,


ऐ दोहरी जिन्दगी तुझे क्या नाम दूँ

तेरे मन की गहराई में

है एक अपराध बोध,

कि दूध मुँहे को सौंपा है,

पराये हाथों में, चन्द पैसों

के खातिर,


उसके निश्चिंत

भविष्य के लिए आज का

सुख छोड़ती,

बचपन की गतिविधि को न

देख पाने का रंज,


किशोरावस्था पर दूर से दृष्टि

गड़ाये, कम समय में,

अधिक दे देने का प्रयास करती


त्यौहार पर समाज से कदम

मिलाने की जिद में आधी रात

उठ तैयारी करती,


आफिस में अपने अस्तित्व

को बचाने के लिए, कुत्सित भावना

कमतर देखती, दृष्टि के आगे

अडिग खड़े रहने के यथासंभव

प्रयास करते करते,

जान ही नहीं पाई


तेरी खुशियों बह गयी,

सामंजस्य बनाने की जद्दोजहद में,


अचानक से आईने ने

रूप की सिलवटों को दिखाया है,


आखिर तेरे पास कहने को

सिर्फ तेरा क्या है. .


बस बहुत हुआ

अब जिन्दगी तू चलेगी

शर्तो पर मेरी


तुझे रोकेगा कौन

बढ़ आगे बढ़


क्यूँ जाती है,

इन भूली भटकी राहों में


रात, सुबह, दोपहर और शाम

क्यों देखती है पिछले जीवन दर्पण


क्यूँ इतिहास देखती है,

समय जा रहा सरपट


आज ले जीने का पैगाम,

ऐ जिन्दगी चल उठ


बढ़ मेरी शर्त पर. .

उन्मुक्त, उल्लास से बढ़ आगे बढ़.......


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