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Deepa Joshi

Others

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Deepa Joshi

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औरत

औरत

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वो थकती नहीं कभी

खेत में, खलिहान में, चौपायों के थान में

चूल्हे में, चाक में, पनघट के पाट में,

ढोती पत्थर, उठाती बोझा,

सीती अपने सपनों को मशीन में

सेवा के लिए जगती, जागती ममता में,

मायके में, ससुराल में सिंचती रिश्तों को,

गाती मंगलगीत, सोहर और भजन,

पाथती रोटी, मिटाती भूख

सहती तिरस्कार, रोती चुपचाप

चैत से फागुन तक, हँसती -रोती,

बच्चों की चिंता में रात ना सोती

क्योंकि वह औरत है, थकती नहीं कभी ...


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