बहुमूल्य बचपन
बहुमूल्य बचपन
ऐ बचपन
हम तुम्हें समझते थे सस्ता,
पर हमने तुम्हें बहुमूल्य होते देखा।
हर मेले में छुपकर गए,
तेरे संग कई रंग जिए,
आज मेलों को भी;
मेलों की भीड़ तरह खोते देखा,
ऐ बचपन
हमने तुम्हें बहुमूल्य होते देखा।
नुक्कड़ पर लगाई कंचो की प्रतियोगिता,
जिसमें हार कर भी,
खुद को समझते थे विजेता,
उन कंचों को आज
हीरों से भी महंगे होते देखा,
ऐ बचपन
हमने तुम्हें बहुमूल्य होते देखा।
मास्टर जी की छड़ी जो लगती थी हाथ पर,
दर्द उसका महसूस होता था रात भर
पिताजी के सामने हंसकर छुपाए हुए,
छड़ी के निशानों को आज रोते हुए देखा,
ऐ बचपन
हमने तुम्हें बहुमूल्य होते देखा।
