भटके हुए लोगों को
भटके हुए लोगों को
देखा है ऐसे भी बेटे को जो माँ बाप की सेवा सच्चे दिल से करता था,
माँ की आखरी सांस तक जिसने अपना फर्ज प्यार से निभाया।
हर बेटा तो लायक नही निकलता कुछ नालायक भी होते है,
जो अपने ही हाथों से अपनी जननी का खून कर देते है।
एक वो सतयुग था जहाँ श्रवण कुमार माँ-बाप को कंधे पर उठाए घूम रहा था,
एक ये कलयुग है जहाँ माँ बाप बोझ बन गए हैं बेटों के लिए।
एक वो सतयुग था जब राम जी वनवास को चले माँ की आज्ञा समझकर,
एक ये कलयुग जब बेटे माँ बाप को वनवास में वृद्ध आश्रम भेज रहे हैं।
दोष किसका है ये तो ऊपर वाला ही जाने की दुनिया आगे बढ़ती जा रही है,
और लोगो की सोच इतनी छोटी की अपनी परंपरा अपने फ़र्ज़ भूलते जा रहे हैं।
खुद की मौज मस्ती में उनको ही अनदेखा कर रहे
जिन्होंने उनके लिए अपनी नींद कुर्बान की थी,
अब तो ईश्वर ही इनको कोई राह दिखाये भटके हुए लोगों को रोशनी दिखाए....।।
