बहती नदी
बहती नदी
इक नदी बहती मनोहर
भाव हिय के नाव अविचल
हौसले से पार लगती
चप्पुओं में पूर्ण है बल।
गा लहर संगीत अनुपम
गम भुलाने की प्रतिज्ञा
चीर देता नीर आतुर
हो नहीं कोई अवज्ञा
गुनगुनाते तीर सरगम
बर्फ पिघलाए हिमाचल।
राह में कितने बवंडर
रेत तैरे मछलियों सी
है धड़कता हिय नदी का
नस फड़कती तितलियों सी
हो हवा सी तेज उड़ती
दे दिखाई श्वेत आंँचल।
साधने को लक्ष्य अपना
बीच पथ के कब रुकी है
जा रही सागर समाने
हर लहर में धुकधुकी है
ये शिला पाषाण चीखें
काट देती धार कोमल।।
