STORYMIRROR

Paramjeet singh

Classics

4  

Paramjeet singh

Classics

बहती नदी

बहती नदी

1 min
341

इक नदी बहती मनोहर

भाव हिय के नाव अविचल

हौसले से पार लगती

चप्पुओं में पूर्ण है बल।


गा लहर संगीत अनुपम

गम भुलाने की प्रतिज्ञा

चीर देता नीर आतुर

हो नहीं कोई अवज्ञा

गुनगुनाते तीर सरगम

बर्फ पिघलाए हिमाचल।


राह में कितने बवंडर

रेत तैरे मछलियों सी

है धड़कता हिय नदी का

नस फड़कती तितलियों सी

हो हवा सी तेज उड़ती

दे दिखाई श्वेत आंँचल।


साधने को लक्ष्य अपना

बीच पथ के कब रुकी है

जा रही सागर समाने

हर लहर में धुकधुकी है

ये शिला पाषाण चीखें

काट देती धार कोमल।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics