"भोर"
"भोर"
रजनी अब बीती, आया ऊषाकाल,
आसमां अरुणित हुआ, चमक उठा भाल।
पक्षियों ने छोड़ दिये, अपने-अपने नीड़,
ऊषापान करने उमड़ी, जलाशयों में भीड़।
शीतल मंद पवन बहे, प्रभात सुहाना,
विहग वृन्द मिल कर, गावें नया तराना।
राधिका तो जाग गई, दिखता नहीं चितचोर ,
सामने आओ कान्हा, सुहानी है भोर।।
