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J P Raghuwanshi

Inspirational

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J P Raghuwanshi

Inspirational

"भोर"

"भोर"

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रजनी अब बीती, आया ऊषाकाल,

आसमां अरुणित हुआ, चमक उठा भाल।


पक्षियों ने छोड़ दिये, अपने-अपने नीड़,

ऊषापान करने उमड़ी, जलाशयों में भीड़।


शीतल मंद पवन बहे, प्रभात सुहाना,

विहग वृन्द मिल कर, गावें नया तराना।


राधिका तो जाग गई, दिखता नहीं चितचोर ,

सामने आओ कान्हा, सुहानी है भोर।।


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