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Neeraj pal

Abstract

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Neeraj pal

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भिक्षुक।

भिक्षुक।

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कृपा करो कृपानिधान, तुम्हरे शरण पड़ा।

गा रहा तुम्हरे यशगान, तुम्हरे शरण पड़ा।।


 किस विध तुमको अपना बनाऊँ,क्या कर तुमको मैं रिझाऊँ।

 दे दो निज भक्ति ज्ञान, तुम्हरी शरण पड़ा।।


 पंच तत्व से बना यह पिंजरा, ले न सका प्रभु नाम तुम्हारा।

 दूर करो अज्ञान, तुम्हरी शरण पड़ा।।


 तुम्हरी लीला कोई समझ न पाया, तुमने शकल संसार रचाया।

 मैं ठहरा नादान, तुम्हरी शरण पड़ा।।


 हृदय मेरा तुम निर्मल बनाना, छल, दंभ, कपट से दूर भगाना।

" नीरज, भिक्षुक समान, तुम्हरे शरण पड़ा।।


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