भाग्यविधाता
भाग्यविधाता
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कौन कहता है मुकाम हासिल नही होते,
बस थोड़ी सी कोशिश की जरूरत होती है,
जब भी कभी गिरता हूँ
तो एक आवाज मुझसे कहती है,
तू थका है क्यूँ,
तू रुका है क्यूँ,
तू झुका है क्यूँ,
फिर से उठ चल,
आगे बढ़ चल,
कुछ कर चल,
रुकना तूने सीखा नही,
चलना तुझे आता है,
कुछ आैर कहने की जरूरत नही,
क्यूँकी तू खुद अपनी भाग्य का विधाता है !