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Bhawna Kukreti Pandey

Abstract

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Bhawna Kukreti Pandey

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भागते पेड़

भागते पेड़

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तपती सड़कों पर जब कई

पेड़ों को भागता पाया, 

रहा न गया, पूछता गया,

पछताता गया।


बताते है 

ये पेड़ जब पौधे थे, 

पनपने को जमीन से उखड़े थे, 

अब पेड़ हैं, पनपने को जमीनों से

उखाड़े गए हैं


ये भागते जा रहे हैं, 

अपनी पुश्तैनी जमीनों की ओर।

पता नही वो अब कैसी होगी ,उर्वर या बंजर, 

उनकी राह देखती भी होगी या नहीं ? 


इन्हें नहीं पता के इनपर 

समय की आफत है या इनके नसीब की मार 

ये किसी का स्वार्थ है या

लाचार है इनकी सरकार।


ये पेड़ जो आज फिर अपनी

जमीन की ओर भाग रहे हैं 

किसी तरह अपने फूलों

को बचाना चाह रहे हैं। 


ये फूल जो कुम्हलाए जाते हैं,

साइकिल की तपती हैंडल पर सर टिकाए,

ये सो रहे हैं या खो रहे हैं मौत की मूर्छा में।


मुझे जानना है, 

ये पेड़, ये फूल अगर रास्ते मे दम तोड़ देंगे

इनकी मौत का कारण क्या होगा ?

इनकी लाशों का वारिस कौन होगा ?


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