बेज़ुबानी
बेज़ुबानी
हम झूठ तुम सच यही कहानी है..
आंखों में आंसू और बहता पानी है...
सांसो के दरमियाँ ख्वाहिशें सिमटे
धड़कनों से जुदा फिर ये निशानी है..
वक्त के दरियां से जो बहकर निकले
मंजिलों से अब न मिलने की ठानी है...
तुम्हें गर अहसास नहीं चाहत की
दिल में दर्द औ खामोश गिरेबानी है..
कुछ मोहब्बत की यादें लिपटे जैसे
चटका आईना बेनूर अब रवानी है...
इश्क़ मेरा औ इश्क़ में मोहलत कैसी
बैखौफ़ तोड़ गई भ्रम तिस्मिलानी हैं...
कभी न हो होगी कोई मन्नत पूरी
नंदिता रुह खामोशी की बेज़ुबानी है..!!
