बेवजह जिंदगी
बेवजह जिंदगी
कोई राब्ता रहा नही अब उनसे,
रुह का वास्ता रहा था कभी जिनसे...
ठिठक सी गई तमाम शामे अब,
बीता करती थी कभी किसी आगोश में...
सिकुड़ से गए सफ्हे वो किताब के,
साथ बैठ पलटा करते थे कभी...
उम्र यूं ही गुजर रही है बेवजह,
जिंदगी हुआ करती थी कभी संग...