STORYMIRROR

Hitesh Rathod

Tragedy

1  

Hitesh Rathod

Tragedy

बेवजह जिंदगी

बेवजह जिंदगी

1 min
98

कोई राब्ता रहा नही अब उनसे,

रुह का वास्ता रहा था कभी जिनसे...


ठिठक सी गई तमाम शामे अब,

बीता करती थी कभी किसी आगोश में...


सिकुड़ से गए सफ्हे वो किताब के,

साथ बैठ पलटा करते थे कभी...


उम्र यूं ही गुजर रही है बेवजह,

जिंदगी हुआ करती थी कभी संग...


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy