ज़िद
ज़िद
साहिल पे कब तक यूं बैठे रहेंगे,
चलो ज़िद करते है कूद जाने की,
कश्ती को तो पार लगना ही है,
गर ज़िद हो भीड़ जाने की,
आदतों का मेरी गिला ना करे,
वो ज़िद पे है अब बिगड़ने की,
ये हौसला कभी हारता नहीं,
गर ज़िद हो जिंदा रहने की।
साहिल पे कब तक यूं बैठे रहेंगे,
चलो ज़िद करते है कूद जाने की,
कश्ती को तो पार लगना ही है,
गर ज़िद हो भीड़ जाने की,
आदतों का मेरी गिला ना करे,
वो ज़िद पे है अब बिगड़ने की,
ये हौसला कभी हारता नहीं,
गर ज़िद हो जिंदा रहने की।