बेटियाँ
बेटियाँ
बेटियाँ होती हैं किताब की तरह,
माँ कहती है हो हिसाब की तरह।
अब उसे उड़ने दो आसमान में,
चमकेगी वह आफताब की तरह।
तम से निकलकर उजाले की ओर
बादलों से निकल माहताब की तरह।
रोको नहीं, नदी बनकर बहने दो,
भावनाएँ बहेगी सैलाब की तरह।
कठिन सवाल जीवन का जब भी हो,
हल कर देगी सही जबाब की तरह।
हर लम्हा तारीख बने उसका अब,
ज़िन्दगी जिए लाजबाब की तरह।
बेटियाँ दो कुलों की रौनक "सपना"
सम्मान दो उसे ख़िताब की तरह।
