बेटी को मां की सीख
बेटी को मां की सीख
एक मां अपनी बेटी को समझा रही है बेटी अपनी जिंदगी की परेशानियों से त्रस्त है।
यह कहानी किसी की भी बेटी के घर की हो सकती है ।
बहुत जी लिया औरों का ख्याल रखकर।
रिश्तों के इस रहस्यमई जंगल में अपने आप को खोकर।
क्या मिला मेरी बेटी तुझे अपने आप को खोकर।
अपने आप को खोकर तूने बहुत सह लिया है।
अब थोड़ा अपने आप के लिए भी जी ले।
पने को ना खो इस रहस्यमई रिश्तों के जंगल के पेड़ों के बीच।
समय निकल जाने पर यह लोग यही कहेंगे,
कि तुमने अपने लिए क्यों नहीं करा हमने कुछ कहा था।
क्यों तुम हमारे लिए मरे खपे हमने कुछ कहा था।
क्यों नहीं तुमने अपनी जिंदगी जी हमने कुछ कहा था।
यह दुनिया है रिश्ते किसी के सगे नहीं है ।
ना देंगे तुझे यह गोल्ड मेडल का तमगा।
तू भले ही कितना मर खप ले इनके लिए।
अपनी जान की बाजी भी लगा देगी तो भी कुछ ना हाथ लगेगा।
तो क्यों नहीं तू अभी से समझ जाती कि तेरी भी है जिंदगी बहुत ही सुहानी।
जिसे सुहाना बनाना है तेरे हाथ में।
जो तेरी परवाह करे न कोई तो तू क्यों करे किसी की परवाह।
बच्चों के साथ अपना मेलजोल बढ़ा ले।
उनको अपनी अहमियत दिखा दे।
अपने लिए भी कुछ जी ले, अपने लिए तो समय निकाल ले।
कुछ खुशी के पल तू खुद अपने लिए भी पा ले।
तू है एक पढ़ी लिखी समझदार अपने पांव पर खड़ी हुई सक्षम नारी।
क्यों नहीं तू पड़ती सब पर भारी।
घुट घुट कर क्यों है जीना
कभी-कभी अपना रौद्र रूप भी दिखा दे।
कि आज की नारी अबला नहीं है सबला है।
जो किसी की मोहताज नहीं।
क्यों किसी के इमोशनल अत्याचार सहे तू
तेरी जिंदगी है तू अपने लिए अच्छी तरह से जी ले।
सक्षम विवेक बुद्धि है तेरे पास उसका तो उपयोग कर ले
और अपनी जिंदगी को गुलजार बना ले।
थोड़ा समय अपने लिए निकाल तो अपने लिए भी जी ले।
थोड़ी देर इस रहस्यमई रिश्तों के जंगल से दूर निकल।
थोड़ा समय तो अपने लिए निकाल।
अपनी जिंदगी को अपनी तरह से जी ले।