बेरोजगार !
बेरोजगार !
उषाकाल में ही जा पहुँचा
जगदीश के पास
डाला उनकी निद्रा में विघ्न
लक्ष्मी ने पूछा–
वत्स, क्या है ऐसी बात
लग रहे तुम बहुत उद्विग्न
बोला नारद – माते !
तुम्हारे इस पुत्र की
खो रही अस्मिता है
कर रहा मेरा काम
आज हर मानव
बड़ी द्विविधा है
हो गया हूँ मैं बेरोजगार
फ़ैल रहा चारों ओर बिना मेरे
हस्तक्षेप के अनाचार !
