बेपनाह मोहब्बत
बेपनाह मोहब्बत


मैंने अपने अल्फाज का हर एक कतरा - कतरा
तेरे नाम की सरगम में पिरोई है
बेपनाह मोहब्बत की एक सल्तनत
को बेमिसाल बनायी है
कभी बिन घटा बादल की तरह बरस परी
तो कभी तेरे सांसो की आहट में आ बसी
दिन के पहर के गगनचुंबी इमारत से
रातो के झरोखे की साया में हमेशा
तेरे इश्क की इबादत बोई है
मैंने अपने अल्फाज का हर एक कतरा - कतरा
तेरे नाम की सरगम में पिरोई है
खुली आँखों ने कभी तेरे इश्क का जाम पिलाया
तो कभी तेरे प्यार मे जोगन बनाया
मिलने - मिलाने से आगे
चाहत का ये सिलसिला, यू ही बढ़ता गया
एतवार मै तुझपे बेमौसम बरसात की तरह करती गई
तु भी ए जानिसार मुझपे
यू ही बरसता गया, बरसता गया