बहू बनूँगी
बहू बनूँगी
मुझे बहू तो बनना है
पर सहनशील दबाव परस्त नहीं
मुझे ससुराल तो जाना है
पर अंदाज में मेरी
मुझे फिजूल की बातें तो करनी है
पर डिनर के संग, सभी के लिए
मैं खाना तो बना दूंगी
पर हर सुबह शाम नहीं
मर्जी होगी मेरी, मजबूरी में नहीं
मुझे बहू तो बनना है
पर बकैती करने वाली सही
संस्कार, सुशीलता की बात पर
सरेआम इमोशनल फूल (मुर्ख)
बनूँगी नहीं
बेटी हूं तो शब्दविहीन बहू
बनूँगी नहीं
मर्यादा निभाउंगी उम्र भर
पर जो होगा न्याय संगत
पुरानी प्रचलन और रूढ़िवादीता
के दहलीज को करुँगी पार
बीबी बनूँगी पर दोस्त वाली सही
बहू बनूँगी पर हकीक़त से भरी
अपने पापा वाली परी
ननद बनूँगी पर बहन या दीदी
वाली ही सही
जेठानी बनूँगी पर ताना सुनाने
वाली नहीं
सारे रिश्तों को भर दूंगी मिठास से
ग़र जो दोगे मुझे सारे प्यार
जिसे मैं छोड़ कर आई संग
आपलोग के साथ
वर्ना लक्ष्मी से काली तक का कर
दूंगी सफर पार
मुझे बहू तो बनना है
पर सहनशील दबाव परस्त नहीं