ममता
ममता
माँ...
मन की मंदिर में
दिल की समंदर में
आँखो की गहराई में
हर जगह पहरा तेरा
एक ममत्व भरी दीवार की भाँति।
माँ..
हर अंकुर को तुमने सींची है,
हर पौधे को तुमने सहेजी है,
यूँ ही नहीं तूने ममता की पराकाष्ठा निभाई है।
यशोदा से कौशल्या तक का,
हर एक किरदार बेमिसाल बनाई है।
माँ....
फर्श से अर्श का मार्ग दिखाई
सहनशीलता का पाठ सिखाई
उंगलीयो के सारे इशारे पर,
सही गलत
का भान कराई।
माँ...
हर एक ख्वाब में पंख लगाई
हर एक जिद्द को पूर्ण करवाई
खुद की बचाई एक-एक रकम से,
मुझे एक चुनिंदा रकम बनाई।
माँ...
तेरी आरजू में निःशब्द हूँ मैं
तेरी बंदगी में निःस्वार्थ हूँ मैं
सजदा करूँ तो करूँ मैं कैसे?
हर डगर जो तेरी ममत्व है।
माँ...
तेरी तिलिस्म भरी ममता नगरी में
खुद को मैं यूँ सराबोर कर लूँ,
ताकि आगे कोई खुद्दारी ना दिल को सताए।
माँ..