सीधी वार
सीधी वार
मेरी हर एक सीधी वार पे,
मेरे चंद अपनो की एक तीरछी चाल होती थी।
उनका इस तरह से मुझपे ढ़ाना,
मुझे और सबल बना गई।
जो चंद लम्हा मैंने गवाई थी उनकी खिचाई मे,
वो लम्हा मुझे आज समझा रही है
मेरे अपने ही एहतियात पे।
वो तो खुद गिर चुके थे पहले ही अपने वार से,
उसे तुम और क्यू चले थे गिराने?
झुकना - झुकाना तो उनका पैतरा था,
फिर तुम क्यू उलझते थे उनकी चाल में?
मन तो चंचल था,
बदले की भावना बचपना भरे दिल की अजब सी सुकून थी।
हारना - हराना यू ही चलता रहा,
आ पहुंचे हमसब किनारे की ओर,
किसी ने कैरियर की शुरुआत की
तो कोई गृहस्थी की आस ली।
उनके चाल से आज मै वाकिफ नहीं,
पर उनका पैतरा मुझे आज भी सबल बना रही।
