बेफ्रिक सी हवा
बेफ्रिक सी हवा
सम्पूर्ण वसुंधरा का भ्रमण मैं
बगैर रोक - टोक कर जाऊं।
हर सीमा के पार हर बार मैं
सारे बंधन तोड़ निकल जाऊं।
रेत में लिपटी आंधियां बनकर
समंदर की लहरों पर इतराऊं।
आसमां तक पहुंच मैं जब चाहूं
पक्षियों के पंखों पर सवार हो जाऊं।
कांटों भरी गलियों में बेधड़क लहराऊं ।
पत्तों से खेलती टहनियों पर ठहर जाऊं।
चांद पर बादलों का पहरा लगाऊं- हटाऊं।
फूलों की महक हर कोने तक पहुंचाऊँ।
तितलियों के पंखों पर बैठ सैर को जाऊं।
अपने देश के तिरंगे को सदा गर्व से फहराऊं।
