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Vaibhav Maske

Tragedy

4.7  

Vaibhav Maske

Tragedy

बेकसूर है हम

बेकसूर है हम

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383


बेकसूर है हम , हमें है पता

सुबह में भी उन चाँद , तारों को पता

जालीम है दुनिया कुछ समझती नहीं,

हमारी मजबुरी में उन्हे चोरी का नाम दिखा ।

चलो हम तो अब समझ गये है

नहीं कभी होगा जिंदगी में सहारा

बरसों से जो चल रहा हैं सिलसीला

अब उन बातों को डराने का बहाना मीला

दर्द तो यार है पुराना मेरा

उसने भी उम्रभर की साथ है ठानी

नापाक तानोंं से दुनीया से रिश्ता हमारा

ना मिला कभी हमें समझने समझाने वाला

चाहा तो था कभी कोई हमारी बेबसी समझें

हमारे भूखे पेट की कोई कुकडुकु समझे

कोई आए रैंचो और देखें दिल के घाव हमारे

कोई समझे माँ की खाँसी और बिनब्याही बहन की लाचारी को

कोई कहे के हम इनसान ही नहीं

दुनिया अब हमें जानवरों जैसा जाने है

कोई आए नहलवाकर हमारी सेल्फी खिंच फेसबुक पे डाले है

जालीम दुनिया लगी है हम नादानों को डुबाने मे

सुनो टेढी नजरों से देखनेवालों

क्या कोई बच्चा अपनी माँ का दुलारा नहीं होवे

क्या कोई इनसान भूख का मतलब ना समझे

बेकसूर है हम भैय्या पेट के लिए बासी खाना चुरावे ।



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