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Vaibhav Maske

Others

4.0  

Vaibhav Maske

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बात करें अंधेरा इंसान से ।

बात करें अंधेरा इंसान से ।

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ढूंढ कहाँ रहे तुम मुझ को

मैं तो तेरी रुह में हूँ

कुछ ने मुझ को हरा कर छिपा

कुछ के जुल्मों की काली रात मैं हूँ।

सन्नाटा सा छाया चांदनी जो ये रात है

आजा इस साये में काले मिल जा तू भी

मैं हूँ घना अंधेरा तेरा आ समा जा मुझ में

रोशनी में रह के भी बन अंधेरे की

मशाल खुद में।


अगर हो कभी सुनसान रास्ते

तो अंधेरा तेरा साया होगा

दुनिया झुकेगी आगे तेरे

सब में तेरे खौफ का बसेरा होगा।

सोच ना उन सच्चाई की बातों को

अंत में सब कुछ खो देते है

कुछ पाना है तो अंधेरा बन तू

बुराई का रखवाला बन तू

अंधेरा बन तू।

ढूंढ ना तू मुझे और कहीं

मैं हूँ तुझ में ही समाया

गर चले सुनसान रास्ते से तू

तू है मेरा आका मैं तेरी छाया।


(इनसान अंधेरे से कहता है )

चलूँ गर मैं रात में राह पर कहीं

रास्ते में चाँद की रोशनी का साथ

भी तो है

गर तू चाहे अमावस की बात करना

मुसाफीर दोस्तों का कंधो पे हाथ

भी तो है।

अजीब है तू ग़रीब है अंधेरा

क्यों लोगों को डराना चाहता तू

आजा तू यहाँ सच्चाई की दुनिया में

यहाँ तो सिर्फ स्नेह और प्यार का

बोलबाला है।

यहाँ डरता नहीं कोई किसी से

पर सर सभी झुकाते है सामने

वजह सम्मान होता उपकारों का

किसी के मन में खौफ का डेरा नहीं।



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