बेख़बर होकर मत चल
बेख़बर होकर मत चल
जिंदगी के सफर में मत होकर चल तू बेख़बर
ये जमाना बड़ा खराब है, दे देगा तुझे जहर
जितना रोयेगा उतना ज्यादा ज़माना हंसेगा,
ये ज़माना बन गया अब कातिलों का शहर
आंख मूँदकर विश्वास करना अब तू छोड़ दे,
पूरे दरिया में आज फैल चुकी जहरीली लहर
खुद का लहूं कर रहा आज ख़ुद के घर से बेघर
जिंदगी के सफर में मत होकर चल तू बेखबर
ज़रा ख़ुद को संभाल, मत हो अंधविश्वास का घर
अपनी मति, हथियारों पर एकबार तू भरोसा कर
पार होगा जग दरिया, उड़ेगा फ़लक में फर-फर
ध्यान से चल, कहीं न लग जाये रिश्तों की ठोकर
जिंदगी के सफ़र में मत होकर चल तू बेखबर
राह में बैठे तेरे लिये बड़े-बड़े मगरमच्छ जलचर
ऊपर फ़लक में देखना छोड़, सामने रख नज़र
कहीं आँख से न चुरा ले कोई कोहिनूरे जिगर
