बेकाबू मन धड़कता है
बेकाबू मन धड़कता है
बेकाबू मन धड़कता है
जीने की वजह पूछता है
समज कुछ नहीं पाता है
बस पिया का नाम लेता है
यूहीं गुजर जायेगी जिंदगानी ऎसे लगता है
बेकाबू मन धड़कता है
बेकाबू मन धड़कता है।
कितना बेबस है करता मुझको -
एक चाँद तले दो अजनबी रहते हैं
इस बड़ी दुनिया में दो प्रेमी जुदा होते हैं
एक पल सदियों में बदल जाते हैं
फिर भी प्रेम कहानियाँ अधूरी रह जाती हैं
बेकाबू मन समज न पाता है
बस यूहीं धड़कता रहता है
शीरी -फरहाद की कहानी में उसे पढ़ता हूँ
हर कंकड -पत्थर में ताजमहल देखता हूँ
दिवानों में अपना नाम सबसे ऊपर पाता हूँ
बस यहीं सोचकर खूश हो जाता हूँ
बेकाबू मन को फिर समझाता हूँ
बेकाबू मन को फिर समझाता हूँ