बेजुबान जीव
बेजुबान जीव
कभी-कभी चेहरा तो उदास इनका भी होता है,
दर्द आँसू बनकर इनकी आँखों से भी बहता है,
मायूस होते हैं ये भी ज़िंदगी में आए तूफ़ानों से,
आखिर इन बेजुबानों का कौन सहारा बनता है।
इन्हें कहाँ पता, क्या है अपनेपन की परिभाषा,
ये बेजुबान जीव तो जानते बस प्यार की भाषा,
ज़िन्दगी भर वफादारी निभाते हैं ये उनके लिए,
जो कोई भी इन जीवों को प्यार से सहला देता।
इंसान की तरह मतलब परस्त नहीं होते जानवर,
वफ़ा निभाते उम्र भर प्यार के बदले प्यार देकर,
धोखा नहीं देते किसी मोड़ पे, सच्चे मित्र समान,
फिर क्यों खुश होता इंसान इनकी बलि चढ़ाकर।
ये बेजुबान फिर भी तो हैं इस जगत का हिस्सा,
इन्हीं से प्रकृति का संतुलन, प्रकृति की सुंदरता,
कह नहीं पाते जुबां से पर हैं इनके भी जज़्बात,
जो मतलबी इंसान कभी, समझ ही कहाँ पाता।
जंगली जानवर या पालतू सभी का है अधिकार,
ये भी तो दया के पात्र बस चाहते थोड़ा सा प्यार,
स्वार्थ पूर्ति हेतु इनकी हत्या करना इन्हें दर्द देना,
इनके प्रति इंसानों का आखिर ये कैसा व्यवहार।