बेजुबान दोस्त
बेजुबान दोस्त
सुबह उठूं भू को चूमूं-
फिर अपनी छत पर घूमूं,
माटी के बर्तन को धोकर-
स्वच्छ नीर उसमें भर लूं.
बैठ वहीं फिर पहरा दूं-
हर गम अपना बिसरा दूं,
आ जाते झट ढेर कबूतर-
अन्न के दाने बिखरा दूं.
गूंज उठें फिर इधर-उधर-
चूं-चूं चीं-चीं पाखी स्वर,
तितली,भंवरे,कीट-पतंगे-
बगिया में आ जाएं नजर .
सबको देखूं भला लगे-
जीने की भी ललक जगे,
बेजुबान ये सारे ही-
फिर भी लगते मुझे सगे.
मेरे घर में भोलू कुत्ता-
एक बिल्ली और गैया है,
इनकी देखभाल करते सब-
अपनी यह दिनचर्या है.
गैया को दूं ताजी रोटी -
दूध कटोरी पीती म्याऊँ,
भोलू को बिस्कुट भाते हैं-
इनके पीछे दौड़ लगाऊँ.
पौधों से बातें करती हूँ-
कागज,कलम दिये वरदान,
मूक रहें पर मुखर लगें सब-
इनसे ही मेरी पहचान.
पर्यावरण सुरक्षित कर लो-
रक्खो हरियाली का ध्यान।