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डा.अंजु लता सिंह 'प्रियम'

Inspirational

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डा.अंजु लता सिंह 'प्रियम'

Inspirational

बेजुबान दोस्त

बेजुबान दोस्त

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सुबह उठूं भू को चूमूं-

फिर अपनी छत पर घूमूं,

माटी के बर्तन को धोकर-

स्वच्छ नीर उसमें भर लूं.


बैठ वहीं फिर पहरा दूं- 

हर गम अपना बिसरा दूं,

आ जाते झट ढेर कबूतर-

अन्न के दाने बिखरा दूं.


गूंज उठें फिर इधर-उधर-

चूं-चूं चीं-चीं पाखी स्वर,

तितली,भंवरे,कीट-पतंगे-

बगिया में आ जाएं नजर .


सबको देखूं भला लगे-

जीने की भी ललक जगे,

बेजुबान ये सारे ही-

फिर भी लगते मुझे सगे.


मेरे घर में भोलू कुत्ता-

एक बिल्ली और गैया है,

इनकी देखभाल करते सब-

अपनी यह दिनचर्या है.


गैया को दूं ताजी रोटी -

दूध कटोरी पीती म्याऊँ,

भोलू को बिस्कुट भाते हैं-

इनके पीछे दौड़ लगाऊँ. 


पौधों से बातें करती हूँ-

कागज,कलम दिये वरदान,

मूक रहें पर मुखर लगें सब-

इनसे ही मेरी पहचान.


पर्यावरण सुरक्षित कर लो-

रक्खो हरियाली का ध्यान। 



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