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parag mehta

Abstract

5.0  

parag mehta

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बेहतर!!!!

बेहतर!!!!

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मैं खामोश ही रहूं 

तो बेहतर होगा !

ना शोर हो किसी भोर

तो बेहतर होगा !

अब अगर यूँ जुदा रहने में

तेरी ख़ुशी है बसी !

तो तेरी मुस्कान की खातिर

यही बेहतर होगा !

कुछ दो बोल तुम्हारे

कुछ दो बोल हमारे !

ना तुम कह पाए

ना मैं सुन पाया !

सोच कर सोचा तो जाना

ना कुछ खोया , ना ही पाया !

अब क्या ही रखा है

इन अनकहे किस्सों में !

साथ हो ना हो

क्या ही फर्क पड़ता है !

बस कहीं किसी ख्याल में

कभी आ गया मैं !

और मुस्करा दिए तुम

तो ज़रूर बेहतर होगा !


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