बेहतर होता
बेहतर होता
जिंदगी के सफर में,
यूँ तो तलाश नहीं किसी हमसफर की,
पर कुछ दूर कोई अपना साथ चलता,
तो बेहतर होता !
हर आसूं को पोछने के लिए,
अपनी हथेलियां ही काफी है,
पर पड़ता जो हाथ किसी का इन नयनों पर
तो बेहतर होता !
कलम काफी है,
मेरा हर दुख- सुख बाटने को,
पर जो सुन लेता दो बात कोई साथ बैठकर,
तो बेहतर होता !
मेरी तन्हाइयां ही काफी है,
यह जिंदगी काटने को,
फिर भी दो पल कोई साथ देता,
तो बेहतर होता !
यूँ तो नहीं कहते किसी से,
अपने हाल- ए- दिल किसी से,
पर कोई बिना कुछ कहे सब जान लेता,
तो बेहतर होता !