बेड़ियाँ
बेड़ियाँ
अभी तो कहाँ टूटी हैं बेड़ियाँ
निशाँ भी है कायम,
पर तुम तो अभी से घबराने लगे
चलना ही तो शुरू किया है अब
अभी तो दौड़े भी नहीं
पर तुम तो अभी से डरने लगे
एक दो पीढ़ी ही तो पहुँची है,
शिक्षा के उच्च स्तर पर,
पर तुम तो अभी से बिखरने लगे
अभी तो पहुंचे भी नहीं
बराबरी में तुम्हारे,
पर तुम तो जड़ों से हिलने लगे
अभी तो ढंग से संगठित भी
नहीं हुए हम,
बिखरे ही पड़े हैं मोतियों की तरह,
पर तुम तो मिटाने में तुलने लगे
क्या होगा, सोचो, अगर प्रयोजन होगा,
सत्ता पर काबिज होने का,
दिमाग से खूंखार तो हम पहले भी थे,
पर डीएनए तुम्हारे अभी से डोलने लगे
औकात ही क्या थी तुम्हारी,
जो राज कर सको भारत वर्ष पर,
अय्यारी और मक्कारी के पुलिंदों,
के सिवाय बचा ही क्या हैं तुम्हारे पास,
हमारा रास्ता, सत्य का रास्ता, बुद्ध का रास्ता
कोई कपटी, जटिल कारस्तानी भी नहीं,
पर तुम तो अभी से मचलने लगे
राजसत्ता तो बसी हैं रग रग में हमारी,
सम्राट अशोक और नागवंश की
संतान हैं हम,
मौर्य का गौरव और बाबा की औलाद हैं हम
अभी दम जरा भरा भी नहीं,
तुम तो अभी से हाथ-पाँव मारने लगे
महलों कि रौनक और
झोपड़ी का स्याह अंधेरा ,
दोनों का अनुभव हैं हमारे पास,
अभी तो कहाँ मशाल ठीक से जली भी नहीं
पर तुम तो अभी से उजाड़ने लगे
बुलन्दी तलक दस्तक हुई नहीं हैं अभी,
सितारों का जमघट हुआ ही नहीं हैं अभी,
और अभी से कदम तुम्हारे डगमगाने लगे
